गुलू-ए-यज़दाँ में नोक-ए-सिनाँ भी टूटी है
कशाकश-ए-दिल-ए-पैग़मबराँ भी टूटी है
सराब है कि हक़ीक़त नज़ारा कि फ़रेब
यक़ीं भी टूटा है तर्ज़-ए-गुमाँ भी टूटी है
सियासत-ए-दिल-आईना चूर चूर तो थी
सियासत-ए-दिल-ए-आहन-गराँ भी टूटी है
अँधेरी रात का ये नीम-बाज़ सन्नाटा
गुलों की साँस रग-ए-गुल्सिताँ भी टूटी है
तुम्हारे जिस्म का सूरज जहाँ जहाँ टूटा
वहीं वहीं मिरी ज़ंजीर-ए-जाँ भी टूटी है
कहाँ हैं आलम-ए-इम्काँ वजूद में आएँ
नज़र नज़र ही रही है जहाँ भी टूटी है
शिकस्त-ओ-रेख़्त ज़माने की ख़ूब है 'मख़दूम'
ख़ुदी तो टूटी थी ख़ू-ए-बुताँ भी टूटी है
ग़ज़ल
गुलू-ए-यज़दाँ में नोक-ए-सिनाँ भी टूटी है
मख़दूम मुहिउद्दीन