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गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है | शाही शायरी
gulshan ki faza dhuan dhuan hai

ग़ज़ल

गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है

हबीब जालिब

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गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है
कहते हैं बहार का समाँ है

बिखरी हुई पत्तियाँ हैं गुल की
टूटी हुई शाख़-ए-आशियाँ है

जिस दिल से उभर रहे थे नग़्मे
पहलू में वो आज नौहा-ख़्वाँ है

हम ही नहीं पाएमाल तन्हा
ऐ दोस्त तबाह इक जहाँ है

'जालिब' वो कहाँ है इश्क़ तेरा
प्यारे वो ग़ज़ल तिरी कहाँ है