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गुलों का रंग तपिश ख़ुशबूएँ समुंदर खींच | शाही शायरी
gulon ka rang tapish KHushbuen samundar khinch

ग़ज़ल

गुलों का रंग तपिश ख़ुशबूएँ समुंदर खींच

फ़रहत नादिर रिज़्वी

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गुलों का रंग तपिश ख़ुशबूएँ समुंदर खींच
कुछ इस तरह से मिरी आरज़ू का पैकर खींच

निकल ही जाए न दम अपना आह-ए-सोज़ाँ से
ज़बाँ पे लफ़्ज़ तो रख इस तरह न तेवर खींच

अटक रहा है मिरा दम निकल न पाएगा
सितम-शिआ'र जिगर से मिरे ये ख़ंजर खींच

महाज़-ए-जंग पे तेरी शिकस्त आख़िर है
हिसार कर ले ख़ुद अपना तमाम लश्कर खींच

कई सितारे खिंचे आएँगे सलामी को
तू इस जगह से ज़रा हट के अपना मेहवर खींच

तुझे तो खींच न पाई हयात की 'फ़रहत'
जो तुझ से हो सके ये ज़िंदगी का पत्थर खींच