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गुल-ए-ख़ुर्शीद खिलाऊँगा चला जाऊँगा | शाही शायरी
gul-e-KHurshid khilaunga chala jaunga

ग़ज़ल

गुल-ए-ख़ुर्शीद खिलाऊँगा चला जाऊँगा

अशरफ़ जावेद

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गुल-ए-ख़ुर्शीद खिलाऊँगा चला जाऊँगा
सुब्ह से हाथ मिलाऊँगा चला जाऊँगा

अब तो चलना है किसी और ही रफ़्तार के साथ
जिस्म बिस्तर पे गिराऊँगा चला जाऊँगा

आबला-पाई है रुस्वाई है रात आई है
दामन एक इक से छुड़ाऊँगा चला जाऊँगा

हिज्र सदियों के तहय्युर की गिरह खोलेगा
इक ज़माने को रुलाऊँगा चला जाऊँगा

बस तुझे देखूँगा आते हुए अपनी जानिब
फूल क़दमों में बिछाऊँगा चला जाऊँगा

इश्क़ भी हुस्न में ज़म होता दिखाऊँगा तुझे
जब दिया रक़्स में लाऊँगा चला जाऊँगा

जिस तरफ़ भूल के भी देखा नहीं आज तलक
क़दम उस सम्त बढ़ाऊँगा चला जाऊँगा