ग़ुबार दिल में भरा किर्किरी सलाम-अलैक
है किस के काम की ये ज़ाहिरी सलाम-अलैक
करें न सीधी निगह दूसरी सलाम-अलैक
है अब के यारों की ये झरझरी सलाम-अलैक
तलव्वुन ऐसा इन अबना-ए-रोज़गार में है
कि सुब्ह मिलिए तो है चरपरी सलाम-अलैक
मबादा बात में बू-ए-तमअ अगर पावें
फिर उन की आँखों से तेरी गिरी सलाम-अलैक
जो शाम देखो तो फिर इन तिलों में तेल नहीं
चुराई आँखें हैं भौवें फिरी सलाम-अलैक
ब-क़ौल-ए-शाएर-ए-बंगाला 'अज़फ़री' यूँ रह
''कि खाना गाँठ का इन से निरी सलाम-अलैक''
ग़ज़ल
ग़ुबार दिल में भरा किर्किरी सलाम-अलैक
मिर्ज़ा अज़फ़री