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ग़ुबार दिल में भरा किर्किरी सलाम-अलैक | शाही शायरी
ghubar dil mein bhara kirkiri salam-alaik

ग़ज़ल

ग़ुबार दिल में भरा किर्किरी सलाम-अलैक

मिर्ज़ा अज़फ़री

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ग़ुबार दिल में भरा किर्किरी सलाम-अलैक
है किस के काम की ये ज़ाहिरी सलाम-अलैक

करें न सीधी निगह दूसरी सलाम-अलैक
है अब के यारों की ये झरझरी सलाम-अलैक

तलव्वुन ऐसा इन अबना-ए-रोज़गार में है
कि सुब्ह मिलिए तो है चरपरी सलाम-अलैक

मबादा बात में बू-ए-तमअ अगर पावें
फिर उन की आँखों से तेरी गिरी सलाम-अलैक

जो शाम देखो तो फिर इन तिलों में तेल नहीं
चुराई आँखें हैं भौवें फिरी सलाम-अलैक

ब-क़ौल-ए-शाएर-ए-बंगाला 'अज़फ़री' यूँ रह
''कि खाना गाँठ का इन से निरी सलाम-अलैक''