गो नज़र अक्सर वो हुस्न-ए-ला-ज़वाल आ जाएगा
राह में लेकिन सराब-ए-माह-ओ-साल आ जाएगा
या शिकन-आलूद हो जाएगी मंज़र की जबीं
या हमारी आँख के शीशे में बाल आ जाएगा
रेत पर सूरत-गरी करती है क्या बाद-ए-जुनूब
कोई दम में मौजा-ए-बाद-ए-शिमाल आ जाएगा
दोस्तो मेरी तबीअत का भरोसा कुछ नहीं
हँसते हँसते आँख में रंग-ए-मलाल आ जाएगा
जाने किस दिन हाथ से रख दूँगा दुनिया की ज़माम
जाने किस दिन तर्क-ए-दुनिया का ख़याल आ जाएगा
हादसा ये है कि सारी ज़िल्लतों के बावजूद
रफ़्ता रफ़्ता ज़ख़्म सू-ए-इंदिमाल आ जाएगा
ग़ज़ल
गो नज़र अक्सर वो हुस्न-ए-ला-ज़वाल आ जाएगा
ख़ुर्शीद रिज़वी