घुटी घुटी ही सही मेरी चाह ले लेना
सफ़र तवील है कुछ ज़ाद-ए-राह ले लेना
मैं बे-समर ही सही फिर भी साया-दार तो हूँ
कड़ी हो धूप तो मुझ में पनाह ले लेना
अभी तो साथ चलो हाँ जहाँ मैं रुक जाऊँ
तुम उस मक़ाम से फिर अपनी राह ले लेना
किसी मक़ाम पे मुमकिन है काम आ जाए
हमारे बीच जो थी रस्म-ओ-राह ले लेना
वो कम-सवाद सही फिर भी ये नहीं आसाँ
ग़नीम-ए-दहर के सर से कुलाह ले लेना
यही बहुत है कि इस दौर-ए-इब्तिला में 'तक़ी'
किसी का मेरी ख़बर गाह गाह ले लेना
ग़ज़ल
घुटी घुटी ही सही मेरी चाह ले लेना
यूसुफ़ तक़ी