घटा सावन की उमडी आ रही है
पयाम-ए-अश्क भर भर ला रही है
रगों में ख़ून गर्दिश कर रहा है
जवानी साज़-ए-दिल पर गा रही है
रुलाता है उन्हें भी क्या ये सावन
मुझे काली घटा तड़पा रही है
तरन्नुम-ख़ेज़ जमुना के किनारे
किसी की याद पैहम आ रही है
ग़ज़ल
घटा सावन की उमडी आ रही है
बीएस जैन जौहर