घर के बाहर भी तो झाँका जा सकता है
और किसी का रस्ता देखा जा सकता है
रात गुज़ारी जा सकती है तारे गिन कर
दिन में चादर तान के सोया जा सकता है
शिकवे दूर किए जा सकते हैं यारों से
इस संडे को फ़ोन घुमाया जा सकता है
उस के जैसा ही अब कुछ हासिल है मुझ को
अब उस की ख़्वाहिश को छोड़ा जा सकता है
वैसे पैसा ही सब कुछ है इस दुनिया में
लेकिन पैसे पर भी थूका जा सकता है
वअ'दा करने में कैसी घबराहट प्यारे
वअ'दे से इक पल में पल्टा जा सकता है
मेरे अन-देखी करने का है क्या कारन
कम से कम उस से पूछा जा सकता है
मैं अपने चेहरे से थोड़ा ऊब गया हूँ
क्या अपना चेहरा भी बदला जा सकता है
शेर कहे जा सकते हैं परिपाटी वाले
और ज़मीनों पर भी सोचा जा सकता है
धीरे धीरे ज़ालिम की जड़ खोदो 'सौरभ'
रस्सी से चट्टान को काटा जा सकता है
ग़ज़ल
घर के बाहर भी तो झाँका जा सकता है
सौरभ शेखर