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गया सब रंज-ओ-ग़म कुंज-ए-क़फ़स का | शाही शायरी
gaya sab ranj-o-gham kunj-e-qafas ka

ग़ज़ल

गया सब रंज-ओ-ग़म कुंज-ए-क़फ़स का

पंडित जवाहर नाथ साक़ी

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गया सब रंज-ओ-ग़म कुंज-ए-क़फ़स का
तरह्हुम हो गया फ़रियाद-रस का

रहे साबित-क़दम राह-ए-वफ़ा में
शिकस्ता दिल हुआ पा-ए-हवस का

हुज़ूरी हो गई ग़ीबत में हम को
तरन्नुम दिल में है बाँग-ए-जरस का

करें उस शोख़ से हम क़त्-ए-उल्फ़त
नहीं ये काम 'साक़ी' अपने बस का