गया सब रंज-ओ-ग़म कुंज-ए-क़फ़स का
तरह्हुम हो गया फ़रियाद-रस का
रहे साबित-क़दम राह-ए-वफ़ा में
शिकस्ता दिल हुआ पा-ए-हवस का
हुज़ूरी हो गई ग़ीबत में हम को
तरन्नुम दिल में है बाँग-ए-जरस का
करें उस शोख़ से हम क़त्-ए-उल्फ़त
नहीं ये काम 'साक़ी' अपने बस का
ग़ज़ल
गया सब रंज-ओ-ग़म कुंज-ए-क़फ़स का
पंडित जवाहर नाथ साक़ी