गया कि सैल-ए-रवाँ का बहाव ऐसा था
वो एक ख़्वाब जो काग़ज़ की नाव ऐसा था
किसी को भी न था आसान साँस का लेना
मिरी ज़मीं पे हवा का दबाव ऐसा था
लहू की धार सलामत रही न साँस का तार
मुझे जो काट गया वो कटाव ऐसा था
वो टिमटिमाता तो उस की ज़िया भी कम पड़ती
किसी दिए से लहू का लगाव ऐसा था
वो एक था जो मुझे चार-सू दिखाई दिया
मैं जंग हार गया हूँ कि दाव ऐसा था
मुझे तो लाज के उजले लिबास में वो बदन
गुलाब बर्फ़ में जैसे छुपाओ ऐसा था
बने हैं नाग मिरे बन में पेड़ जितने थे
लगी है आग सबा का सुभाव ऐसा था
ग़ज़ल
गया कि सैल-ए-रवाँ का बहाव ऐसा था
दानियाल तरीर