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गर्दिश-ए-चश्म-ए-यार ने मारा | शाही शायरी
gardish-e-chashm-e-yar ne mara

ग़ज़ल

गर्दिश-ए-चश्म-ए-यार ने मारा

बेखुद बदायुनी

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गर्दिश-ए-चश्म-ए-यार ने मारा
दौर-ए-लैल-ओ-नहार ने मारा

मर रहा हूँ मगर नहीं मरता
ख़लिश-ए-इंतिज़ार ने मारा

सख़्त-जानी मिरी जो सुन पाई
दम न फिर तेग़-ए-यार ने मारा

वस्ल में भी ये मुज़्तरिब ही रहा
इस दिल-ए-बे-क़रार ने मारा

हम तो जीते अभी मगर 'बेख़ुद'
सितम-ए-रोज़गार ने मारा