गर्दिश-ए-चश्म-ए-यार ने मारा
दौर-ए-लैल-ओ-नहार ने मारा
मर रहा हूँ मगर नहीं मरता
ख़लिश-ए-इंतिज़ार ने मारा
सख़्त-जानी मिरी जो सुन पाई
दम न फिर तेग़-ए-यार ने मारा
वस्ल में भी ये मुज़्तरिब ही रहा
इस दिल-ए-बे-क़रार ने मारा
हम तो जीते अभी मगर 'बेख़ुद'
सितम-ए-रोज़गार ने मारा
ग़ज़ल
गर्दिश-ए-चश्म-ए-यार ने मारा
बेखुद बदायुनी