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गर्द-बाद अफ़्सोस का जंगल से है पैदा हनूज़ | शाही शायरी
gard-baad afsos ka jangal se hai paida hanuz

ग़ज़ल

गर्द-बाद अफ़्सोस का जंगल से है पैदा हनूज़

वली उज़लत

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गर्द-बाद अफ़्सोस का जंगल से है पैदा हनूज़
हात मिलता मातम-ए-मजनूँ से है सहरा हनूज़

जों सदफ़ है गरचे आँखों में सजन बस्ता हनूज़
खोलता नीं उक़्दा-ए-दिल वो दुर-ए-यकता हनूज़

जब पता पूछूँ मैं घर का यार हरजाई सेती
दो दिला करने कूँ कहता है मुझे जा जा हनूज़

तौक़-ओ-पेच-ए-ज़ुल्फ़-ए-लैला है बघोले से अयाँ
ख़ाक-ए-मजनूँ से नियाज़-ओ-नाज़ है रुस्वा हनूज़

गरचे मिस्ल-ए-शबनम-ए-गुल दिल दिया हूँ पी के हात
वो रंगीला खोलता नीं उक़्दा-ए-सीमा हनूज़

जान-ए-शीरीं से शरर तन में जलाता है मुदाम
ताइन-ए-कम-ज़र्फ़ी-ए-फ़रहाद है ख़ारा हनूज़

दाग़-ए-दिल 'उज़लत' को जूँ लाला है बुलबुल बिन बहार
उन गुलों से जी किसी रंगों नहीं लगता हनूज़