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गर मेरे लहू रोने का बारान बनेगा | शाही शायरी
gar mere lahu rone ka baran banega

ग़ज़ल

गर मेरे लहू रोने का बारान बनेगा

वली उज़लत

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गर मेरे लहू रोने का बारान बनेगा
कूचा तिरा रश्क-ए-चमनिस्तान बनेगा

गर उस क़द-ए-मौज़ूँ का तमन्ना में असर है
बरजस्ता मिरी बातों का दीवान बनेगा

उस ज़ुल्फ़ की गर लैल बरात आवे मिरे हात
दिल के मिरे दाग़ों का चराग़ान बनेगा

'उज़लत' तू कर उस ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से ये दिल जम्अ
ज़ुन्नार का शीराज़ा-ए-क़ुरआन बनेगा