गर जफ़ा की न हो वफ़ा माने
कोई ज़ालिम नहीं तिरा माने
चारा-गर के इलाही टूटें हाथ
हो गई दर्द की दवा माने
सामने तेरे दम न निकला हाए
हसरतों की हुई क़ज़ा माने
क्यूँ न उल्टी नक़ाब चेहरे से
हश्र की क्यूँ हुई हया माने
क्यूँ न फेरी छुरी रुका क्यूँ हाथ
तेरा जल्लाद कौन था माने
छोड़ कर पर्दा हट गया वो शोख़
नाला दीदार का हुआ माने
'आसमान' उस क़मर के आने का
हुआ इज़हार-ए-मुद्दआ माने
ग़ज़ल
गर जफ़ा की न हो वफ़ा माने
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम