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गर जफ़ा की न हो वफ़ा माने | शाही शायरी
gar jafa ki na ho wafa mane

ग़ज़ल

गर जफ़ा की न हो वफ़ा माने

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम

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गर जफ़ा की न हो वफ़ा माने
कोई ज़ालिम नहीं तिरा माने

चारा-गर के इलाही टूटें हाथ
हो गई दर्द की दवा माने

सामने तेरे दम न निकला हाए
हसरतों की हुई क़ज़ा माने

क्यूँ न उल्टी नक़ाब चेहरे से
हश्र की क्यूँ हुई हया माने

क्यूँ न फेरी छुरी रुका क्यूँ हाथ
तेरा जल्लाद कौन था माने

छोड़ कर पर्दा हट गया वो शोख़
नाला दीदार का हुआ माने

'आसमान' उस क़मर के आने का
हुआ इज़हार-ए-मुद्दआ माने