गर है नए निज़ाम की तख़्लीक़ का ख़याल
आबादियों को नज़्र-ए-बयाबाँ तो कीजिए
गर जल्वा-ए-जमाल की दिल को है आरज़ू
अश्कों से चश्म-ए-शौक़ चराग़ाँ तो कीजिए
होना है दर्द-ए-इश्क़ से गर लज़्ज़त-आश्ना
दिल को ख़राब-ए-तल्ख़ी-ए-हिज्राँ तो कीजिए
इक लम्हा-ए-नशात की गर है हवस 'शमीम'
दिल को हलाक-ए-हसरत-ओ-अरमाँ तो कीजिए
ग़ज़ल
गर है नए निज़ाम की तख़्लीक़ का ख़याल
सफ़िया शमीम