गर अदू तक़दीर है तदबीर रहने दीजिए
दोस्त का दिल में हमारे तीर रहने दीजिए
हैं जो आशिक़ काम मज़दूरों का वो करते नहीं
ज़िम्मा-ए-फ़रहाद जू-ए-शीर रहने दीजिए
लैला-ओ-मजनूँ की इक काग़ज़ पे होती है शबीह
रू-ब-रू उस के मिरी तस्वीर रहने दीजिए
है जुनूँ फ़सली करो ज़ंजीर तार-ए-अश्क से
तौर पर मेरे मिरी तदबीर रहने दीजिए
सीम-ओ-ज़र बनता है ख़ाक-ए-कुश्ता-दिल से आप के
पास अपने जान कर इक्सीर रहने दीजिए
आस्तीं से हाथ बाहर हो न ऐ जान-ए-जहाँ
बस मियाँ अंदर ही ये शमशीर रहने दीजिए
तीर-ए-बे-पैकाँ निशाना तोड़ता है कब 'वक़ार'
मुँह की मुँह में आह-ए-बे-तासीर रहने दीजिए

ग़ज़ल
गर अदू तक़दीर है तदबीर रहने दीजिए
किशन कुमार वक़ार