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गर अदू तक़दीर है तदबीर रहने दीजिए | शाही शायरी
gar adu taqdir hai tadbir rahne dijiye

ग़ज़ल

गर अदू तक़दीर है तदबीर रहने दीजिए

किशन कुमार वक़ार

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गर अदू तक़दीर है तदबीर रहने दीजिए
दोस्त का दिल में हमारे तीर रहने दीजिए

हैं जो आशिक़ काम मज़दूरों का वो करते नहीं
ज़िम्मा-ए-फ़रहाद जू-ए-शीर रहने दीजिए

लैला-ओ-मजनूँ की इक काग़ज़ पे होती है शबीह
रू-ब-रू उस के मिरी तस्वीर रहने दीजिए

है जुनूँ फ़सली करो ज़ंजीर तार-ए-अश्क से
तौर पर मेरे मिरी तदबीर रहने दीजिए

सीम-ओ-ज़र बनता है ख़ाक-ए-कुश्ता-दिल से आप के
पास अपने जान कर इक्सीर रहने दीजिए

आस्तीं से हाथ बाहर हो न ऐ जान-ए-जहाँ
बस मियाँ अंदर ही ये शमशीर रहने दीजिए

तीर-ए-बे-पैकाँ निशाना तोड़ता है कब 'वक़ार'
मुँह की मुँह में आह-ए-बे-तासीर रहने दीजिए