ग़म से फ़ुर्सत नहीं कि तुझ से कहें
तुझ को रग़बत नहीं कि तुझ से कहें
हिज्र-पत्थर गड़ा है सीने में
पर वो शिद्दत नहीं कि तुझ से कहें
आरज़ू कसमसाए फिरती है
कोई सूरत नहीं कि तुझ से कहें
ख़ामुशी की ज़बाँ समझ लेना
अपनी आदत नहीं कि तुझ से कहें
दर्द हद से सिवा तो है लेकिन
ऐसी हालत नहीं कि तुझ से कहें
दिल को अब भी तिरा जुनूँ है 'असद'
ऐसी वहशत नहीं कि तुझ से कहें
ग़ज़ल
ग़म से फ़ुर्सत नहीं कि तुझ से कहें
सुबहान असद