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ग़म की तहज़ीब अज़िय्यत का क़रीना सीखें | शाही शायरी
gham ki tahzib aziyyat ka qarina sikhen

ग़ज़ल

ग़म की तहज़ीब अज़िय्यत का क़रीना सीखें

शाहिद माहुली

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ग़म की तहज़ीब अज़िय्यत का क़रीना सीखें
आओ इस शहर में जीना है तो जीना सीखें

मौत आने की सदा लम्हा-ब-लम्हा चाहें
ज़ीस्त करने का हुनर ज़ीना-ब-ज़ीना सीखें

हर नहीं हाँ से बड़ी है ये हक़ीक़त समझें
हाँ बहुत सीख चुके अब तो कोई ना सीखें

झाँक कर आँखों में सीने में उतर कर देखें
नक़्शा-ए-दिल से कोई राज़-ए-दफ़ीना सीखें

शहर-ए-कोताह में सब पस्त-नशीं पस्त-निशाँ
किस को हमराज़ करें किस का क़रीना सीखें

फ़ल्सफ़ा इश्क़ का असरार फ़न-ओ-हिकमत के
ख़ानक़ाहों से पढ़ें सीना-ब-सीना सीखें

दिल तो आईना है शफ़्फ़ाफ़ रखें ऐ 'शाहिद'
क्यूँ करें बुग़्ज़-ओ-हसद किस लिए कीना सीखें