ग़म की सौग़ात है ख़मोशी है
चाँदनी रात है ख़मोशी है
मैं अकेला नहीं कि बातें हों
वो मिरे सात है ख़मोशी है
मेरी बर्बादियों की साज़िश में
ज़ब्त का हात है ख़मोशी है
कैसा आसेब है कि हर जानिब
जश्न-ए-जज़्बात है ख़मोशी है
वक़्त के ज़ख़्म ज़ख़्म होंटों पर
अन-कही बात है ख़मोशी है
फिर उसी तरह गर्म माथे पर
काँपता हाथ है ख़मोशी है
सुब्ह-ए-नौ हो कि शाम-ए-ग़म 'असलम'
गोशा-ए-ज़ात है ख़मोशी है
ग़ज़ल
ग़म की सौग़ात है ख़मोशी है
असलम कोलसरी