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ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं | शाही शायरी
gham ke mujrim KHushi ke mujrim hain

ग़ज़ल

ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं

साग़र सिद्दीक़ी

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ग़म के मुजरिम ख़ुशी के मुजरिम हैं
लोग अब ज़िंदगी के मुजरिम हैं

और कोई गुनाह याद नहीं
सज्दा-ए-बे-ख़ुदी के मुजरिम हैं

इस्तिग़ासा है राह ओ मंज़िल का
राहज़न रहबरी के मुजरिम हैं

मय-कदे में ये शोर कैसा है
बादा-कश बंदगी के मुजरिम हैं

दुश्मनी आप की इनायत है
हम फ़क़त दोस्ती के मुजरिम हैं

हम फ़क़ीरों की सूरतों पे न जा
ख़िदमत-ए-आदमी के मुजरिम हैं

कुछ ग़ज़ालान-ए-आगही 'साग़र'
नग़्मा-ओ-शाएरी के मुजरिम हैं