EN اردو
ग़म हमारा गुलाब हो जाए | शाही शायरी
gham hamara gulab ho jae

ग़ज़ल

ग़म हमारा गुलाब हो जाए

दिनेश ठाकुर

;

ग़म हमारा गुलाब हो जाए
ज़िंदगी ला-जवाब हो जाए

याद ने हर्फ़ हर्फ़ घेरा है
गर लिखूँ तो किताब हो जाए

दुश्मनों की तरफ़ भी जाएँगे
दोस्तों से हिसाब हो जाए

इम्तिहाँ ले न बे-क़रारी का
मेरे ख़त का जवाब हो जाए

आप नाहक़ ख़ुदा से डरते हैं
शैख़ साहब शराब हो जाए

तेरे कूचे में आ के लगता है
जैसे मुफ़्लिस नवाब हो जाए

ख़ुद-परस्ती अना ही काफ़ी है
रुख़ ज़रा बे-नक़ाब हो जाए

मैं ने देखा कि तू है पहलू में
अब मुजस्सम ये ख़्वाब हो जाए