ग़म-ए-जाँ तू है अगर राहत-ए-जाँ है तू है
हम ने ये जान लिया जान-ए-जहाँ है तू है
वो ख़रीदार जो ख़्वाहाँ हो मता-ए-दिल का
किस को बतलाऊँ वो दिल-ख़्वाह कहाँ है तू है
सैद-ए-दिल एक भी जाँ-बर तिरे हाथों न हुआ
नावक-अंदाज़ जो बे-तीर-ओ-कमाँ है तू है
दिल-ए-बेनाम-ओ-निशाँ पर मिरे जूँ नक़्श-ए-नगीं
नाम का जिस के नुमूदार निशाँ है तू है
शम-ए-फ़ानूस तुझे कहिए कि हर मज्लिस में
है निहाँ पर्दे में और साफ़ अयाँ है तू है
क्या कहूँ ऐ दिल-ए-जाँ-काह मिरी छाती पर
उस की फ़ुर्क़त में जो इक कोह-ए-गिराँ है तू है
छोड़ के ज़ोफ़ में तन्हा तू न जावे ग़म-ए-दोस्त
अब मिरे जी में जो कुछ ताब-ओ-तवाँ है तू है
चमन-ए-दहर में नर्गिस की तरह दीदा-ए-ज़ार
जिस के दीदार की ख़ातिर निगराँ है तू है
किस को शीरीं कहूँ अब जिस की है ख़ून-ए-फ़रहाद
जू-ए-ख़ूँ हर मिज़ा मेरे से रवाँ है तू है
सिर्फ़ बुलबुल ही नहीं नारा-ज़नाँ गुलशन में
गुल भी जिस गुल के लिए जामा-दराँ है तू है
करे तासीर 'मुहिब' दिल में वहीं सामेअ' के
पुर-असर जिस की मोहब्बत का बयाँ है तू है
ग़ज़ल
ग़म-ए-जाँ तू है अगर राहत-ए-जाँ है तू है
वलीउल्लाह मुहिब