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ग़म-ए-हयात ग़म-ए-दिल निशात-ए-जाँ गुज़रा | शाही शायरी
gham-e-hayat gham-e-dil nishat-e-jaan guzra

ग़ज़ल

ग़म-ए-हयात ग़म-ए-दिल निशात-ए-जाँ गुज़रा

अब्दुल मतीन नियाज़

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ग़म-ए-हयात ग़म-ए-दिल निशात-ए-जाँ गुज़रा
तुम्हारे साथ हर इक लम्हा शादमाँ गुज़रा

तड़प के दर्द से फ़रियाद को जो लब खोले
सितम शिआ'र ज़माने पे ये गराँ गुज़रा

बदल दे रुख़ जो मिरी ज़िंदगी के धारों का
वो हादिसा मिरे दिल पर अभी कहाँ गुज़रा

जवाब-ए-तूर-ओ-तजल्ली कहेंगे अहल-ए-नज़र
जो दिल की राह से वो हुस्न-ए-मेहरबाँ गुज़रा

बसा के दिल में तिरे ग़म तिरे सितम ऐ दोस्त
जहाँ जहाँ से भी गुज़रा मैं नग़्मा-ख़्वाँ गुज़रा