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ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-जाँ है कि नहीं | शाही शायरी
gham-e-dauran gham-e-jaanan gham-e-jaan hai ki nahin

ग़ज़ल

ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-जाँ है कि नहीं

जाफ़र ताहिर

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ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-जाँ है कि नहीं
दिल-सिताँ सिलसिला-ए-ग़म-ज़दगाँ है कि नहीं

हर नफ़स बज़्म-ए-गुलिस्ताँ में ग़ज़ल-ख़्वाँ था कभी
हर नफ़स नाला-कशाँ नौहा-कुनाँ है कि नहीं

हर नज़र नग़्मा-सरा अंजुमन-आरा थी कभी
हर नज़र हैरती-ए-रंग-ए-जहाँ है कि नहीं

हर ज़बाँ पर था कभी तज़किरा-ए-दौर-ए-बहार
हर ज़बाँ शिकवा-गर-ए-जौर-ए-ख़िज़ाँ है कि नहीं

मय-चकाँ बादा-निशाँ थे लब-ए-गुल-रंग कभी
लब-ए-गुल-रंग पे ज़ख़्मों का गुमाँ है कि नहीं

सुर्मा-ए-चश्म-ए-इनायत की हिकायत छोड़ो
आज हर आँख में आहों का धुआँ है कि नहीं

क़ाफ़िले जाने घटाओं के कहाँ उतरेंगे
हर ख़म-ए-ज़ुल्फ़ ब-हसरत-निगराँ है कि नहीं

दश्त-ए-वहशत से नहीं कम ये जहान-ए-गुल-ओ-बू
सूरत-ए-रेग-ए-रवाँ उम्र-ए-रवाँ है कि नहीं

नग़्मा-ए-बाद-ए-बहारी जिसे तुम कहते हो
जरस-ए-क़ाफ़िला-ए-गुल की फ़ुग़ाँ है कि नहीं

न तो बुलबुल की नवा है न सदा-ए-ताऊस
सेहन-ए-गुलज़ार में अब अम्न-ओ-अमाँ है कि नहीं

मुझ से क्या पूछते हो कौन यहाँ तक पहुँचा
सुर्ख़ी-ए-ख़ार-ए-बयाबाँ से अयाँ है कि नहीं

ज़िंदगी कुछ भी सही फिर भी बड़ी दौलत है
मौत सी शय भी यहाँ जिंस-ए-गिराँ है कि नहीं

सूरत-ए-लुत्फ़-ओ-करम ये हो तो दिल क्यूँ न जले
आग पत्थर के भी सीने में निहाँ है कि नहीं

ज़ुल्म चुप-चाप सहे जाओगे आख़िर कब तक
ऐ असीरान-ए-क़फ़स मुँह में ज़बाँ है कि नहीं

ये अदब-गाह-ए-मोहब्बत है जो चुप हूँ 'ताहिर'
वर्ना याँ कौन सा अंदाज़-ए-बयाँ है कि नहीं