गली से तिरी जो कि ऐ जान निकला
गरेबाँ से दस्त-ओ-गरेबान निकला
तिरी आन पे ग़श हूँ हर आन ज़ालिम
तो इक आन लेकिन न याँ आन निकला
यही मुझ को रह रह के आता है अरमाँ
कि तुझ से न कुछ मेरा अरमान निकला
मिरी आह-ए-आतिश-फ़िशाँ देखती है
लिए घर से हर आन क़ुरआन निकला
मिरी जान शर्त-ए-रिफ़ाक़त नहीं ये
निकल जान तू भी कि पैकान निकला
किया मैं ने मुजरा तो झुँझला के बोला
कहाँ का मिरा जान पहचान निकला
अजब बे-बहा है मिरा अश्क यारो
ये कम-बख़्त लड़का तो तूफ़ान निकला
मुझे शैख़ उल्फ़त से माने है 'एहसाँ'
वली जिस को समझा था शैतान निकला
ग़ज़ल
गली से तिरी जो कि ऐ जान निकला
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी