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गली से तिरी जो कि ऐ जान निकला | शाही शायरी
gali se teri jo ki ai jaan nikla

ग़ज़ल

गली से तिरी जो कि ऐ जान निकला

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

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गली से तिरी जो कि ऐ जान निकला
गरेबाँ से दस्त-ओ-गरेबान निकला

तिरी आन पे ग़श हूँ हर आन ज़ालिम
तो इक आन लेकिन न याँ आन निकला

यही मुझ को रह रह के आता है अरमाँ
कि तुझ से न कुछ मेरा अरमान निकला

मिरी आह-ए-आतिश-फ़िशाँ देखती है
लिए घर से हर आन क़ुरआन निकला

मिरी जान शर्त-ए-रिफ़ाक़त नहीं ये
निकल जान तू भी कि पैकान निकला

किया मैं ने मुजरा तो झुँझला के बोला
कहाँ का मिरा जान पहचान निकला

अजब बे-बहा है मिरा अश्क यारो
ये कम-बख़्त लड़का तो तूफ़ान निकला

मुझे शैख़ उल्फ़त से माने है 'एहसाँ'
वली जिस को समझा था शैतान निकला