गले लग कर मिरे वो जाने हँसता था कि रोता था
न खुल कर धूप फैली थी न बादल खुल के बरसा था
कभी दिल भी नहीं इक ज़ख़्म आँखों की जगह आँसू
कभी मैं भी न था बस डाइरी में शे'र लिक्खा था
वो हर पल साथ है मेरे कहाँ तक उस को मैं देखूँ
गए वो दिन कि उस के नाम पर भी दिल धड़कता था
यहाँ हर कश्ती-ए-जाँ पर कई माँझी मुक़र्रर थे
उधर साज़िश थी पानी की इधर क़ज़िया हवा का था
छुपा कर ले गया अपने दुखों को सारी दुनिया से
लगा था यूँ तो हम तुम सा वो जादूगर बला का था
ग़ज़ल
गले लग कर मिरे वो जाने हँसता था कि रोता था
एजाज़ उबैद