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ग़ैर उल्फ़त का राज़ क्या जाने | शाही शायरी
ghair ulfat ka raaz kya jaane

ग़ज़ल

ग़ैर उल्फ़त का राज़ क्या जाने

जलील मानिकपूरी

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ग़ैर उल्फ़त का राज़ क्या जाने
लुत्फ़-ए-नाज़-ओ-नियाज़ क्या जाने

नीम-जानों पे क्या गुज़रती है
नर्गिस-ए-नीम-बाज़ क्या जाने

मेरे तूल-ए-शब-ए-जुदाई को
तेरी ज़ुल्फ़-ए-दराज़ क्या जाने

पाक-बाज़ान-ए-मय-कदा का मक़ाम
जो न हो पाक-बाज़ क्या जाने

दिल है उस पर्दे में कोई वर्ना
शम्अ सोज़ ओ गुदाज़ क्या जाने

हम जो मस्ती में गिरते पड़ते हैं
ज़ाहिद ऐसी नमाज़ क्या जाने

राह-ए-उल्फ़त न जिस ने तय की हो
वो नशेब-ओ-फ़राज़ क्या जाने

जिस के दिल में न सोज़ हो वो 'जलील'
कैफ़-ए-आवाज़-ए-साज़ क्या जाने