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ग़ैर के घर बन के डाली जाएगी | शाही शायरी
ghair ke ghar ban ke Dali jaegi

ग़ज़ल

ग़ैर के घर बन के डाली जाएगी

नसीम भरतपूरी

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ग़ैर के घर बन के डाली जाएगी
क्यूँ-कर उन की ईद ख़ाली जाएगी

आप ने बाँधी है क्यूँ तलवार आज
क्या मिरी हसरत निकाली जाएगी

फँस चुका दिल हो चुकी आशुफ़्तगी
अब तबीअत क्या सँभाली जाएगी

जान का देना मुझे मंज़ूर है
उन की फ़रमाइश न टाली जाएगी

उन पे ज़ाहिर हो न ऐ दिल शौक़-ए-मर्ग
तेग़ गर्दन से उठा ली जाएगी

दिल को वापस तुम से क्या माँगेंगे हम
दे चुके जो शय वो क्या ली जाएगी

क्यूँ न वो बेचैन होएँगे 'नसीम'
सय्यदों की आह ख़ाली जाएगी