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गहरे सुरों में अर्ज़-ए-नवा-ए-हयात कर | शाही शायरी
gahre suron mein arz-e-nawa-e-hayat kar

ग़ज़ल

गहरे सुरों में अर्ज़-ए-नवा-ए-हयात कर

मजीद अमजद

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गहरे सुरों में अर्ज़-ए-नवा-ए-हयात कर
सीने पे एक दर्द की सिल रख के बात कर

ये दूरियों का सैल-ए-रवाँ बर्ग-ए-नामा भेज
ये फ़ासलों के बंद-ए-गिराँ कोई बात कर

तेरा दयार रात मिरी बाँसुरी की लय
इस ख़्वाब-ए-दिल-नशीं को मिरी काएनात कर

मेरे ग़मों को अपने ख़यालों में बार दे
इन उलझनों को सिलसिला-ए-वाक़िआत कर

आ एक दिन मिरे दिल-ए-वीराँ में बैठ कर
इस दश्त के सुकूत-ए-सुख़न-जू से बात कर

'अमजद' नशात-ए-ज़ीस्त इसी कशमकश में है
मरने का क़स्द जीने का अज़्म एक सात कर