गहरे सुरों में अर्ज़-ए-नवा-ए-हयात कर
सीने पे एक दर्द की सिल रख के बात कर
ये दूरियों का सैल-ए-रवाँ बर्ग-ए-नामा भेज
ये फ़ासलों के बंद-ए-गिराँ कोई बात कर
तेरा दयार रात मिरी बाँसुरी की लय
इस ख़्वाब-ए-दिल-नशीं को मिरी काएनात कर
मेरे ग़मों को अपने ख़यालों में बार दे
इन उलझनों को सिलसिला-ए-वाक़िआत कर
आ एक दिन मिरे दिल-ए-वीराँ में बैठ कर
इस दश्त के सुकूत-ए-सुख़न-जू से बात कर
'अमजद' नशात-ए-ज़ीस्त इसी कशमकश में है
मरने का क़स्द जीने का अज़्म एक सात कर

ग़ज़ल
गहरे सुरों में अर्ज़-ए-नवा-ए-हयात कर
मजीद अमजद