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फ़िक्र-ए-उक़्बा है मुझे ख़्वाहिश-ए-दुनिया है मुझे | शाही शायरी
fikr-e-uqba hai mujhe KHwahish-e-duniya hai mujhe

ग़ज़ल

फ़िक्र-ए-उक़्बा है मुझे ख़्वाहिश-ए-दुनिया है मुझे

हरी चंद अख़्तर

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फ़िक्र-ए-उक़्बा है मुझे ख़्वाहिश-ए-दुनिया है मुझे
ऐश की धुन है मुझे मौत का धड़का है मुझे

मौत कहते हैं जिसे ज़ब्त की तकमील न हो
कि तनफ़्फ़ुस पे भी फ़रियाद का धोका है मुझे

हुस्न वो चाहिए जो इश्क़ का आईना बने
या'नी अपने लिए अपनी ही तमन्ना है मुझे

तुम न घबराओ मुझे तुम से कोई काम नहीं
अपनी ख़्वाहिश है मुझे अपनी तमन्ना है मुझे

ये तो मा'लूम नहीं उन का इरादा क्या है
हाँ निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ से देखा है मुझे

हिज्र की शब उधर अल्लाह इधर वो बुत है
देखना ये है कि अब कौन बुलाता है मुझे

एक बुत एक ही बुत का हूँ पुजारी 'अख़्तर'
अपने इस शिर्क पे तौहीद का दा'वा है मुझे