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फ़ज़ा-ए-शाम ज़िया-ए-सहर उसी से मिली | शाही शायरी
faza-e-sham ziya-e-sahar usi se mili

ग़ज़ल

फ़ज़ा-ए-शाम ज़िया-ए-सहर उसी से मिली

एहतराम इस्लाम

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फ़ज़ा-ए-शाम ज़िया-ए-सहर उसी से मिली
कशिश हयात को अल-मुख़्तसर उसी से मिली

उसी से मुझ को मिला इश्तियाक़ मंज़िल का
मिरे सफ़र को फ़ज़ा-ए-सफ़र उसी से मिली

बुलंद मर्तबा-ए-मुश्त-ए-ख़ाक उसी ने किया
तमाम फ़हम-ओ-ज़का-ओ-नज़र उसी से मिली

ग़ुरूर ख़ुद पे जिसे जिस क़दर भी हो लेकिन
मिली जिसे भी मता-ए-हुनर उसी से मिली

उसी ने ज़ुल्मत-ए-गुम-गश्तगी को दूर किया
तलाश-ए-हक़ को रह-ए-मो'तबर उसी से मिली

अता करेगा हमें भी वही रिदा-ए-ज़िया
कि जुगनुओं को क़बा-ए-शरर उसी से मिली

वो बे-ख़बर है नहीं एहतिराम जिस को ख़बर
कि आदमी को मिली हर ख़बर उसी से मिली