फ़ज़ा-ए-नीलगूँ का ध्यान छोड़ दे
परिंद किस तरह उड़ान छोड़ दे
नए जहान की कैमिस्ट्री समझ
गए हुए दिनों का ध्यान छोड़ दे
शुरूअ' हो चुकी है जंग शहर में
मोहब्बतों को दरमियान छोड़ दे
ज़मीन छोड़ कर कहाँ रहेगा तू
ये ख़्वाहिशों का आसमान छोड़ दे
क़दम से जो क़दम नहीं मिला रहा
उसे कहो वो कारवान छोड़ दे
नए जहान का है कर्बला नया
तू दोस्तों का इम्तिहान छोड़ दे
सो अब कहानी रुख़ बदल चुकी है दोस्त
यहाँ पुरानी दास्तान छोड़ दे
ग़ज़ल
फ़ज़ा-ए-नीलगूँ का ध्यान छोड़ दे
अज़हर अब्बास