EN اردو
फ़स्ल की जल्वागरी देखता हूँ | शाही शायरी
fasl ki jalwagari dekhta hun

ग़ज़ल

फ़स्ल की जल्वागरी देखता हूँ

ज़ुबैर शिफ़ाई

;

फ़स्ल की जल्वागरी देखता हूँ
शाख़ काँटों से भरी देखता हूँ

रक़्स-गाहों में बड़े चर्चे हैं
कौन है लाल परी देखता हूँ

चाँद को चाहिए हम-शक्ल अपना
रात-भर दर-बदरी देखता हूँ

लौ मचलती है खुली खिड़की में
रोज़ इक शम्अ' धरी देखता हूँ

मेरे बस में है नहीं क्या चलना
झंडियाँ लाल हरी देखता हूँ

देखता हूँ मैं 'ज़ुबैर' अपनी तरफ़
या जमाल-ए-क़मरी देखता हूँ