फ़र्त-ए-शौक़ उस बुत के कूचे में लगा ले जाएगा
काबा-ए-मक़्सूद तक मुझ को ख़ुदा ले जाएगा
काट कर पर भी मुझे सय्याद बे-क़ाबू न छोड़
ना-तवाँ हूँ बाद का झोका उड़ा ले जाएगा
रोते रोते जान जावेगी फ़िराक़-ए-यार में
अश्क का दरिया मिरा मुर्दा बहा ले जाएगा
दिल मिरा मुट्ठी में रखते हो तुम्हारे हाथ से
छीन कर इक दिन उसे दुज़्द-ए-हिना ले जाएगा
मिस्र तक पहुँचे न जो कनआँ' से वो यूसुफ़ हूँ मैं
दस्त-ए-इख़्वाँ से छुटा तो भेड़िया ले जाएगा
एक गुल उस बाग़ का बू-ए-वफ़ा रखता नहीं
सब्ज़ा-ए-बेगाना शौक़-ए-आश्ना ले जाएगा
वा'दा-ए-सादिक़ तो इज़राईल से है देखिए
इस सिरे से मुझ को कब तक उस सिरा ले जाएगा
बाग़बाँ गुलशन के दरवाज़े को क्या रखता है बंद
कौन ग़ुंचे की कुलह गुल की क़बा ले जाएगा
उस्तुख़्वाँ उजरत में देंगे हम फ़क़ीर ऐ शाह-ए-हुस्न
अर्ज़ी अपने शौक़ की तुझ तक हुमा ले जाएगा
कश्ती-ए-तन बहर-ए-हस्ती में रही बरसों तबाह
पार इसे इक दम में इस का नाख़ुदा ले जाएगा
हुस्न दिखला देगा ऐ बुत तुझ में शान अल्लाह की
तेरे आगे आलम अपनी इल्तिजा जाएगा
बोसे लेगा दस्त-ए-तेग़-ए-क़ातिल-ए-बेबाक के
'आतिश'-ए-मक़्तूल अपना ख़ूँ-बहा ले जाएगा
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-शौक़ उस बुत के कूचे में लगा ले जाएगा
हैदर अली आतिश