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फ़रोग़-ए-गुल से अलग बर्क़-ए-आशियाँ से अलग | शाही शायरी
farogh-e-gul se alag barq-e-ashiyan se alag

ग़ज़ल

फ़रोग़-ए-गुल से अलग बर्क़-ए-आशियाँ से अलग

रविश सिद्दीक़ी

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फ़रोग़-ए-गुल से अलग बर्क़-ए-आशियाँ से अलग
लगी है आग यहाँ से अलग वहाँ से अलग

सुकूत-ए-नाज़ ने इज़हार कर दिया जिस का
वो एक बात थी पैराया-ए-बयाँ से अलग

सुनें तो हम भी ज़रा जब्र-ओ-इख़्तियार की बात
कहाँ कहाँ हैं ये शामिल कहाँ कहाँ से अलग

हमारा हाल ज़माने से कुछ जुदा तो नहीं
ये दास्ताँ नहीं दुनिया की दास्ताँ से अलग

ख़िज़ाँ का ज़िक्र ही क्या है कि ऐ 'रविश' हम ने
भरी बहार गुज़ारी है गुलिस्ताँ से अलग