फ़रोग़-ए-दीदा-ओ-दिल लाला-ए-सहर की तरह
उजाला बन के रहो शम-ए-रहगुज़र की तरह
पयम्बरों की तरह से जियो ज़माने में
पयाम-ए-शौक़ बनो दौलत-ए-हुनर की तरह
ये ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी है हम-नफ़सो
सितारा बन के जले बुझ गए शरर की तरह
डरा सकी न मुझे तीरगी ज़माने की
अँधेरी रात से गुज़रा हूँ मैं क़मर की तरह
समुंदरों के तलातुम ने मुझ को पाला है
चमक रहा हूँ इसी वास्ते गुहर की तरह
तमाम कोह-ओ-तिल-ओ-बहर-ओ-बर हैं ज़ेर-ए-नगीं
खुला हुआ हूँ मैं शाहीं के बाल-ओ-पर की तरह
ग़ज़ल
फ़रोग़-ए-दीदा-ओ-दिल लाला-ए-सहर की तरह
अली सरदार जाफ़री