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फ़क़ीराना आए सदा कर चले | शाही शायरी
faqirana aae sada kar chale

ग़ज़ल

फ़क़ीराना आए सदा कर चले

मीर तक़ी मीर

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फ़क़ीराना आए सदा कर चले
कि म्याँ ख़ुश रहो हम दुआ कर चले

I came chanting as a mendicant
and bestowed a blessing, be content

जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम
सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले

I will not live without you, I did say
lo, now I fulfill that vow today

शिफ़ा अपनी तक़दीर ही में न थी
कि मक़्दूर तक तो दवा कर चले

no cure was there in my fate's intent
even gifted healers tried and went

पड़े ऐसे अस्बाब पायान-ए-कार
कि नाचार यूँ जी जला कर चले

in the end such tasks did there present
helpless and heartbroken that I went

वो क्या चीज़ है आह जिस के लिए
हर इक चीज़ से दिल उठा कर चले

pray, what object was it, for whose sake?
everything my heart chose to forsake

कोई ना-उमीदाना करते निगाह
सो तुम हम से मुँह भी छुपा कर चले

lest I might cast a despairing glance
you passed by me looking askance

बहुत आरज़ू थी गली की तिरी
सो याँ से लहू में नहा कर चले

In your lane Oh! how I wished to stay
so there, bathed in blood, I made my way

दिखाई दिए यूँ कि बे-ख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले

self-forgetful your sight made me be
from my very self you parted me

जबीं सज्दा करते ही करते गई
हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले

head bowed, constantly, without a fuss
call of love's worship was answered thus

परस्तिश की याँ तक कि ऐ बुत तुझे
नज़र में सभों की ख़ुदा कर चले

I worshipped you, Idol, to such degree
that You, as God, would every person see

झड़े फूल जिस रंग गुलबुन से यूँ
चमन में जहाँ के हम आ कर चले

flowers strewn in every shape and hue
in life's garden as I did pass through

न देखा ग़म-ए-दोस्ताँ शुक्र है
हमीं दाग़ अपना दिखा कर चले

I never saw the pain of friends, thanks be!
displayed my scars, passed on quietly

गई उम्र दर-बंद-ए-फ़िक्र-ए-ग़ज़ल
सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले

life I spent in thoughts of poetry
and raised this art to such degree

कहें क्या जो पूछे कोई हम से 'मीर'
जहाँ में तुम आए थे क्या कर चले

"what did you do miir in your earthly stay?"
if I were asked, what can I ever say?