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फ़न अस्ल में पिन्हाँ है दिल-ए-ज़ार के अंदर | शाही शायरी
fan asl mein pinhan hai dil-e-zar ke andar

ग़ज़ल

फ़न अस्ल में पिन्हाँ है दिल-ए-ज़ार के अंदर

असरार अकबराबादी

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फ़न अस्ल में पिन्हाँ है दिल-ए-ज़ार के अंदर
फ़नकार है इक और भी फ़नकार के अंदर

काँटों पे बिछाता है गुलाबों का बिछौना
दो रंग हैं इक साथ मिरे यार के अंदर

वो शोर था महफ़िल में कोई सुन नहीं पाया
इक चीख़ थी पाज़ेब की झंकार के अंदर

तुम सच की ज़ीनत थे मुझे देखते कैसे
मैं भी था नई सुब्ह के अख़बार के अंदर

'असरार' मुझे दिल ने ये कल रात बताया
शो'ला हूँ बुलंदी का मैं इक ख़ार के अंदर