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फ़जर उठ ख़्वाब सीं गुलशन में जब तुम ने मली अँखियाँ | शाही शायरी
fajar uTh KHwab sin gulshan mein jab tumne mali ankhiyan

ग़ज़ल

फ़जर उठ ख़्वाब सीं गुलशन में जब तुम ने मली अँखियाँ

आबरू शाह मुबारक

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फ़जर उठ ख़्वाब सीं गुलशन में जब तुम ने मली अँखियाँ
गईं मुँद शर्म सूँ नर्गिस की प्यारे जूँ कली अँखियाँ

नज़र भर देख तेरे आतिशीं रुख़्सार ऐ गुल-रू
मिरे दिल की ब-रंग-ए-क़तरा-ए-शबनम गली अँखियाँ

ख़िरामाँ आब-ए-हैवाँ जूँ चला जब जान आगे सीं
अंझू का भेस कर पीछूँ सीं प्यारे बह चली अँखियाँ

तुम्हें औरों सीं दूना देखती हैं ख़ुश-नुमाई में
हुनर जाने हैं अपना आज ऐब-ए-अहवली अँखियाँ

पकड़ मिज़्गाँ के पंजे सूँ मरोड़ा यूँ मिरे दिल को
तिरी ज़ोर-आवरी में आज रुस्तम हैं बली अँखियाँ

तिरा हर उज़्व प्यारे ख़ुश-नुमा है उज़्व-ए-दीगर सीं
मिज़ा सीं ख़ूब-तर अबरू व अबरू सीं भली अँखियाँ

तहय्युर के फँदे में सैद हो कर चौकड़ी भूले
अगर आहू कूँ दिखलाऊँ सजन की अचपली अँखियाँ

हुई फ़ानूस गर्दूं के सियह काजल सूँ सर-ता-पा
शब-ए-हिज्राँ में तेरी शम्अ हो याँ लग जली अँखियाँ

ज़बाँ कर अपने मिज़्गाँ कूँ लगी हैं रेख़्ते पढ़ने
हुई हैं 'आबरू' के वस्फ़ में तेरी वली अँखियाँ