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एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत | शाही शायरी
ek tum hi nahin duniya mein jafakar bahut

ग़ज़ल

एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

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एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत
दिल सलामत है तो दिल के लिए आज़ार बहुत

हाए क्या चीज़ है महरूमी-ओ-ग़म का रिश्ता
मिल गए ज़ीस्त के हर मोड़ पे ग़म-ख़्वार बहुत

याद-ए-अहबाब की ख़ुशबू से महकती शामें
कुछ कहो होती हैं कम्बख़्त दिल-आज़ार बहुत

इश्क़-ए-आवारा कहाँ क़ैद-ए-दर-ओ-बाम कहाँ
बे-नवाओं के लिए साया-ए-दीवार बहुत

दिल की रफ़्तार बदल जाती थी आवाज़ के साथ
याद आता है वो पैराया-ए-गुफ़्तार बहुत

एक दिन वक़्त बताएगा जुनूँ की अज़्मत
यूँ तो हम लोग हैं रुस्वा सर-ए-बाज़ार बहुत

वो कशाकश है कि जीना भी है दूभर 'ताबाँ'
इश्क़ मासूम बहुत हुस्न फ़ुसूँ-कार बहुत