एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत
दिल सलामत है तो दिल के लिए आज़ार बहुत
हाए क्या चीज़ है महरूमी-ओ-ग़म का रिश्ता
मिल गए ज़ीस्त के हर मोड़ पे ग़म-ख़्वार बहुत
याद-ए-अहबाब की ख़ुशबू से महकती शामें
कुछ कहो होती हैं कम्बख़्त दिल-आज़ार बहुत
इश्क़-ए-आवारा कहाँ क़ैद-ए-दर-ओ-बाम कहाँ
बे-नवाओं के लिए साया-ए-दीवार बहुत
दिल की रफ़्तार बदल जाती थी आवाज़ के साथ
याद आता है वो पैराया-ए-गुफ़्तार बहुत
एक दिन वक़्त बताएगा जुनूँ की अज़्मत
यूँ तो हम लोग हैं रुस्वा सर-ए-बाज़ार बहुत
वो कशाकश है कि जीना भी है दूभर 'ताबाँ'
इश्क़ मासूम बहुत हुस्न फ़ुसूँ-कार बहुत
ग़ज़ल
एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ