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एक क़दम ख़ुश्की पर है और दूसरा पानी में | शाही शायरी
ek qadam KHushki par hai aur dusra pani mein

ग़ज़ल

एक क़दम ख़ुश्की पर है और दूसरा पानी में

जमाल एहसानी

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एक क़दम ख़ुश्की पर है और दूसरा पानी में
सारी उम्र बसर कर दी है नक़्ल-ए-मकानी में

आँसू बहते हैं और दिल ये सोच के डरता है
आँख कहीं कोई बात न कह दे उस से रवानी में

राह में सारे चराग़ उसी के दम से रौशन हैं
जो पैमाँ हवा से बाँधा था नादानी में

सारे साहिल सारे सागर उस की हैं मीरास
जिस के पाँव ज़मीं पर ठहरें बहते पानी में

दो जीवन ताराज हुए तब पूरी हुई बात
कैसा फूल खिला है और कैसी वीरानी में

जब उसे देखो आँख और दिल को साथ मिला लेना
इक आईना कम पड़ जाएगा हैरानी में