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एक ख़ुश्बू दिल-ओ-जाँ से आई | शाही शायरी
ek KHushbu dil-o-jaan se aai

ग़ज़ल

एक ख़ुश्बू दिल-ओ-जाँ से आई

सलीम अहमद

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एक ख़ुश्बू दिल-ओ-जाँ से आई
इक महक ज़ख़्म-ए-ज़बाँ से आई

दश्त-ए-बे-आब की मानिंद था मैं
ये नई मौज कहाँ से आई

सर्द थी मौत की मानिंद हयात
आँच सी शोला-ए-जाँ से आई

इतनी रौनक़ सर-ए-बाज़ार-ए-वफ़ा
मेरे सौदा-ए-ज़ियाँ से आई

कितनी तारीक थीं रातें मेरी
रौशनी किस के मकाँ से आई

इश्क़ की दौलत-ए-बेदार 'सलीम'
हुस्न पर हुस्न-ए-गुमाँ से आई