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एक कहानी ख़त्म हुई है एक कहानी बाक़ी है | शाही शायरी
ek kahani KHatm hui hai ek kahani baqi hai

ग़ज़ल

एक कहानी ख़त्म हुई है एक कहानी बाक़ी है

कुमार पाशी

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एक कहानी ख़त्म हुई है एक कहानी बाक़ी है
मैं बे-शक मिस्मार हूँ लेकिन मेरा सानी बाक़ी है

दश्त-ए-जुनूँ की ख़ाक उड़ाने वालों की हिम्मत देखो
टूट चुके हैं अंदर से लेकिन मन-मानी बाक़ी है

हाथ मिरे पतवार बने हैं और लहरें कश्ती मेरी
ज़ोर हवा का क़ाएम है दरिया की रवानी बाक़ी है

गाहे गाहे अब भी चले जाते हैं हम उस कूचे में
ज़ेहन बुज़ुर्गी ओढ़ चुका दिल की नादानी बाक़ी है

कुछ ग़ज़लें उन ज़ुल्फ़ों पर हैं कुछ ग़ज़लें उन आँखों पर
जाने वाले दोस्त की अब इक यही निशानी बाक़ी है

नई नई आवाज़ें उभरीं 'पाशी' और फिर डूब गईं
शहर-ए-सुख़न में लेकिन इक आवाज़ पुरानी बाक़ी है