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एक इक हर्फ़ समेटो मुझे तहरीर करो | शाही शायरी
ek ek harf sameTo mujhe tahrir karo

ग़ज़ल

एक इक हर्फ़ समेटो मुझे तहरीर करो

यासमीन हमीद

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एक इक हर्फ़ समेटो मुझे तहरीर करो
मिरी यकसूई को आमदा-ए-ज़ंजीर करो

सब ख़द-ओ-ख़ाल मिरे धुँद हुए जाते हैं
सुब्ह के रंग से आओ मुझे तस्वीर करो

जीतना मेरे लिए कर्ब हुआ जाता है
मेरे पिंदार को तोड़ो मुझे तस्ख़ीर करो

उस इमारत को गिरा दो जो नज़र आती है
मिरे अंदर जो खंडर है उसे तामीर करो

अब मिरी आँख से ले लो ख़लिश-ए-बीनाई
या मिरे ख़्वाब को शर्मिंदा-ए-ताबीर करो