एक आईना रू-ब-रू है अभी
उस की ख़ुश्बू से गुफ़्तुगू है अभी
वही ख़ाना-ब-दोश उम्मीदें
वही बे-सब्र दिल की ख़ू है अभी
दिल के गुंजान रास्तों पे कहीं
तेरी आवाज़ और तू है अभी
ज़िंदगी की तरह ख़िराज-तलब
कोई दरमाँदा आरज़ू है अभी
बोलते हैं दिलों के सन्नाटे
शोर सा ये जो चार-सू है अभी
ज़र्द पत्तों को ले गई है हवा
शाख़ में शिद्दत-ए-नुमू है अभी
वर्ना इंसान मर गया होता
कोई बे-नाम जुस्तुजू है अभी
हम-सफ़र भी हैं रहगुज़र भी है
ये मुसाफ़िर ही कू-ब-कू है अभी
ग़ज़ल
एक आईना रू-ब-रू है अभी
अदा जाफ़री