एहसान ले न हिम्मत-ए-मर्दाना छोड़ कर
रस्ता भी चल तू सब्ज़ा-ए-बेगाना छोड़ कर
मरने के बा'द फिर नहीं कोई शरीक-ए-हाल
जाता है शम-ए-कुश्ता को परवाना छोड़ कर
होंटों पे आज तक हैं शब-ए-ऐश के मज़े
साक़ी का लब लिया लब-ए-पैमाना छोड़ कर
अफ़ई नहीं खुली हुई ज़ुल्फ़ों का अक्स है
जाते कहाँ हो आईना ओ शाना छोड़ कर
तूल-ए-अमल पे दिल न लगाना कि अहल-ए-बज़्म
जाएँगे ना-तमाम ये अफ़्साना छोड़ कर
लबरेज़ जाम-ए-उम्र हुआ आ गई अजल
लो उठ गए भरा हुआ पैमाना छोड़ कर
उस पीर-ज़ाल-ए-दहर की हम ठोकरों में हैं
जब से गई है हिम्मत-ए-मर्दाना छोड़ कर
पहरों हमारा आप में आना मुहाल है
कोसों निकल गया दिल-ए-दीवाना छोड़ कर
उतरा जो शीशा ताक़ से ज़ाहिद का है ये हाल
करता है रक़्स सज्दा-ए-शुकराना छोड़ कर
ये सुमअ'-ओ-रिया तो निशानी है कुफ़्र की
ज़ुन्नार बाँध सुब्हा-ए-सद-दाना छोड़ कर
रिंदान-ए-मय-कदा भी हैं ऐ ख़िज़्र मुंतज़िर
बस्ती में आइए कभी वीराना छोड़ कर
एहसान सर पे लग़्ज़िश-ए-मस्ताना का हुआ
हम दो क़दम न जा सके मय-ख़ाना छोड़ कर
वादी बहुत मुहीब है बीम-ओ-उमीद का
देखेंगे शेर पर दिल-ए-दीवाना छोड़ कर
रो रो के कर रही है सुराही विदाअ' उसे
जाता है दूर दूर जो पैमाना छोड़ कर
तौबा तो की है 'नज़्म' बिना होगी किस तरह
क्यूँ-कर जिओगे मशरब-ए-रिंदाना छोड़ कर
ग़ज़ल
एहसान ले न हिम्मत-ए-मर्दाना छोड़ कर
नज़्म तबा-तबाई