एहसान-ए-संग-ओ-ख़िश्त उठा लेना चाहिए
घर अब कोई न कोई बना लेना चाहिए
इतनी ग़लत नहीं है ये वाइज़ की बात भी
थोड़ा बहुत सवाब कमा लेना चाहिए
हालात क्या हों अगले पड़ाव पे क्या ख़बर
सपना या संग कोई बचा लेना चाहिए
वो रात है कि साया बदन से है मुन्हरिफ़
हम किस जगह खड़े हैं पता लेना चाहिए
दुश्मन या दोस्त कौन खड़ा है पस-ए-ग़ुबार
जो सो रहे हैं उन को जगा लेना चाहिए
हुस्न-ए-बुताँ की बात ही 'अज़्मी' छिड़ी रहे
मौसम का कुछ न कुछ तो मज़ा लेना चाहिए

ग़ज़ल
एहसान-ए-संग-ओ-ख़िश्त उठा लेना चाहिए
इस्लाम उज़्मा