डूबते वक़्त जो कुछ हाथ में गौहर आए
सब के सब नाख़ुदा के हाथ में हम धर आए
जंग लड़ने गए हम जो सहर-ए-दुनिया से
शाम को घर कई हिस्सों में बिखर कर आए
उस की आँखों को तमाशे की तमन्ना है बहुत
उस से कहना कि किसी रात मिरे घर आए
हाए उस नक़्ल-ए-मकानी ने किया है बर्बाद
जितने बसने को गए उतने उजड़ कर आए
ग़ज़ल
डूबते वक़्त जो कुछ हाथ में गौहर आए
चराग़ बरेलवी