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डूबने वाले को तिनके का सहारा है बहुत | शाही शायरी
Dubne wale ko tinke ka sahaara hai bahut

ग़ज़ल

डूबने वाले को तिनके का सहारा है बहुत

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

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डूबने वाले को तिनके का सहारा है बहुत
रात तारीक सही एक सितारा है बहुत

दर्द उठता है जिगर में किसी तूफ़ाँ की तरह
तब तिरी यादों के दामन का किनारा है बहुत

ज़ुल्म जिस ने किए वो शख़्स बना है मुंसिफ़
ज़ुल्म पर ज़ुल्म ने मज़लूम को मारा है बहुत

राह दुश्वार है पग पग पे हैं काँटे लेकिन
राह-रौ के लिए मंज़िल का इशारा है बहुत

उस को पाने की तमन्ना ही रही जीवन भर
दूर से हम ने मसर्रत को निहारा है बहुत

फ़ासले बढ़ते गए उम्र भी ढलती ही गई
वस्ल का ख़्वाब लिए वक़्त गुज़ारा है बहुत

होंट ख़ामोश थे इक आह भी हम भर न सके
बारहा दिल ने मगर तुम को पुकारा है बहुत

झूटी तारीफ़ से लगता है बहुत डर 'मोना'
मीठी बातों ने ही शीशे में उतारा है बहुत